125वीं जयंती : प्रकृति के अनोखे सुकुमार कवि थे सुमित्रानंदन पंत
125th birth anniversary Sumitranandan Pant : पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश/पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश/मेखलाकार पर्वत अपार/अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़/अवलोक रहा है बार-बार/नीचे जल में निज महाकार/जिसके चरणों में पला ताल/दर्पण-सा फैला है विशाल! (वर्षा की ऋतु थी और पर्वतों के प्रदेश में प्रकृति पल-पल अपना रूप बदल रही थी. मेखलाकार पर्वत अपने चरण तल में दर्पण से फैले विशाल ताल के जल में अपने हजारों-हजार दृग सुमनों को फाड़-फाड़ कर अपना महाकार देख रहा था). ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ शीर्षक कविता की इन पंक्तियों के बाद यह जताने के लिए किसी और उद्धरण की आवश्यकता नहीं रह जाती कि जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा के साथ हिंदी के छायावाद काल के चार प्रमुख कवियों (आधार स्तंभों) में से एक सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के कैसे सुकुमार कवि हैं.
हिंदी में प्रकृति के और भी कई प्रतिभासंपन्न कवि हुए हैं, परंतु प्रकृति के जैसे संश्लिष्ट चित्र पंत की रचनाओं में मिलते हैं, अन्यत्र दुर्लभ हैं. यह भी गौरतलब है कि प्रकृति के विकट आकर्षण में बंधे पंत अपनी काव्य यात्रा में एक ही जगह ठहरे नहीं रह जाते. एक समय जहां प्रकृति के प्रेम में पगे वे यह तक........
© Prabhat Khabar
