पुण्यतिथि विशेष : बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, मानवीयता व राष्ट्रीयता के कवि
Balkrishna Sharma Naveen : अपनी हिंदी में एक कालजयी गीत है, विप्लव-गीत- ‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए!’ आजादी की लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार स्मृतिशेष बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ की लेखनी से निकला यह गीत आज भी कहीं गूंजता है, तो सुनने वालों की भुजाएं फड़कने लगती हैं, परंतु आज की पीढ़ी को शायद ही मालूम हो कि ‘नवीन’ ने जब इसे रचा तब भीषण मोहताजी के शिकार थे. उनके सामने पापी पेट का सवाल तो मुंह बाये खड़ा ही रहता था, तन ढकने के लिए साल में दो धोतियां भी नहीं जुड़ पाती थीं.
उनका जन्म आठ दिसंबर, 1897 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर राज्य के शाजापुर परगने के भयाना गांव में एक अत्यंत विपन्न वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता जमनालाल शर्मा वैष्णवों के प्रसिद्ध तीर्थ नाथद्वारा में रहते थे, लेकिन अभाव व विपन्नता ने इस परिवार को ऐसा घेर रखा था कि मजबूर माता को बालकृष्ण को गायों के बाड़े में जन्म देना पड़ा था. बाद में भी विपन्नता के चलते वे आस-पास के किसी समृद्ध परिवार में पिसाई-कुटाई करके ‘कुछ’ ले आतीं, तो पहले बालकृष्ण का, फिर उनका पेट भरने की जुगत हो पाती. फिर भी........
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