स्मृति शेष : अपूरणीय क्षति है दिशोम गुरु का जाना
Shibu Soren demise : दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जाना न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश, खास कर आदिवासी समाज, झारखंडी समाज के लिए बड़ी दुखदायी घटना है. कह सकते हैं कि झारखंड राज्य बनने के बाद झारखंडियों के लिए सबसे दुखद घटना. अब झारखंड को उस व्यक्ति के बिना रहना होगा, आगे बढ़ना होगा, जिसने अलग झारखंड राज्य दिलाया, जिसने लंबे संघर्ष के बाद महाजनी प्रथा को खत्म किया, जिसने झारखंडियों (आदिवासी-मूलवासी) को मान-सम्मान के साथ जीने का हक दिलाया, जो समाज के सबसे कमजोर वर्ग की आवाज थे, जिसे पूरा झारखंड अपना अभिभावक मानता था, जिनमें सभी जाति-धर्म के लोगों को साथ लेकर चलने का अदभुत गुण था, जिनमें सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने की क्षमता थी, जिन्हें झारखंड के लोग सबसे ज्यादा प्यार करते थे.
सही मायने में शिबू सोरेन (जो दिशोम गुरु, गुरुजी, बाबा के नाम से भी लोकप्रिय थे) जननेता थे, जो लोगों की नब्ज को समझते थे. उनकी जरूरतों को समझते थे, उसे महसूस करते थे और फैसला लेते थे. एक ऐसे नेता, जिन्हें सुनने के लिए झारखंड आंदोलन के दौरान लोग 50-60 किलोमीटर दूर पैदल चल कर आते थे. उन पर इतना भरोसा कि जो गुरुजी ने कह दिया, उस पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते थे. यह भरोसा कोई एक दिन में नहीं बना, वर्षों के संघर्ष से यह बना. अब उनकी कमी खलती रहेगी.
शिबू सोरेन में नेतृत्व का अदभुत गुण था. संगठन बनाने और उसे मजबूत करने की क्षमता का सबसे बड़ा उदाहरण तो झारखंड मुक्ति मोर्चा है. उन्होंने विनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ........
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