23 मार्च पर विशेष : आम लोगों की चेतना में जीवित...
सुधीर विद्यार्थी
Shaheed Bhagat Singh: गत अनेक वर्षों से शहीद भगत सिंह को याद करने का सिलसिला तेजी से चल पड़ा है. यहां तक कि कुछ समय पूर्व हिंदी सिनेमा ने भी इस क्रांतिकारी शहीद की छवि को बेचने के लिए एक साथ पांच-पांच फिल्में बना डालीं. भगत सिंह सही अर्थों में लोक नायक थे. उन पर सर्वाधिक लोकगीत इस देश की कम पढ़ी-लिखी या अनपढ़ जनता ने तब रचे, जब बौद्धिकों के विमर्श में भगत सिंह दूर तक नहीं थे. मुझे याद आता है कि एक समय गांव के बाजार-हाट, मेलों में पान की दुकानों और ट्रकों के दरवाजों पर दोनों ओर भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरें हुआ करती थीं. यह उस जनता की चेतना थी, जिसने लंबे समय तक इन क्रांति नायकों को अपने दिलों के भीतर जगह दी. अकादमिक चिंतन या बौद्धिक बहसों में वह बहुत बाद में आये, जबकि लोक के बीच वह बहुत पहले नायकत्व हासिल कर चुके थे. भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी संग्राम को बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करने वाले पहले व्यक्ति ही थे, पर वह स्वयं विकास की प्रक्रिया में थे. उनकी जो भी विचार संपदा अब तक सामने है, उसके साथ यदि उनकी जेल में लिखी वे चार खो गयी पुस्तकें भी सम्मुख होतीं, तब भी उनके चिंतन और बौद्धिक क्षमताओं का नया झरोखा हमारे लिए........
© Prabhat Khabar
