आपातकाल के उस डरावने माहौल की याद आज भी है
-प्रो राजकुमार जैन-
50 Years of Emergency : पचास साल बाद जब मैं आपातकाल के उस दौर को याद करता हूं, तो एक अजीब-सा अहसास होता है. चारों तरफ अशांति, उथल-पुथल और भय का माहौल था. आपातकाल भले ही 25 जून, 1975 को लगा हो, लेकिन उसकी पृष्ठभूमि तो पहले से ही बननी शुरू हो गयी थी. तत्कालीन दो आंदोलनों-गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन और बिहार के छात्र आंदोलन ने आपातकाल लगाने की पृष्ठभूमि तैयार की. देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, लेकिन सत्ता पर उनके बेटे संजय गांधी का कब्जा था, जो उग्र और अलोकतांत्रिक थे. इंदिरा गांधी के जो सहयोगी और सलाहकार थे, वे भी उतने ही अलोकतांत्रिक थे. उनमें से एक देवकांत बरुआ ने तो ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया’ का नारा ही गढ़ दिया था. ऐसे ही सिद्धार्थशंकर रे थे, जिन्होंने आपातकाल लगाने की सलाह दी थी. इंदिरा गांधी को भी लगा था कि कुछ समय आपातकाल लगाने के बाद उसे हटा लिया जायेगा.
जब आपातकाल लगाया गया, तब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफसर बन गया था, लेकिन प्रोबेशन पर था. चूंकि मैं शुरू से ही समाजवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ था, इसलिए आपातकाल लगने के बाद मैंने साथियों के साथ भूमिगत रहकर आंदोलन जारी रखने का फैसला लिया.........





















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