बदलते समाज में सिनेमा भी बदले
अनुभव सिन्हा
बाॅलीवुड पर बड़ी बातें होती हैं. इस तरह की बातें होनी भी चाहिए. हमारा देश क्रिकेट और सिनेमा से जितना प्यार करता है, उतना किसी और चीज से नहीं करता है. और जब आप प्यार करते हैं, तो अधिकार का अहसास भी लाजिमी है. चाय की दुकान पर विराट कोहली की तकनीक की आलोचना या राजकुमार हिरानी की कहानी में झोल आम चर्चा का विषय होते हैं. इस बात पर खफा होना भी लाजिमी है कि भाई, क्रीज पर जाकर खड़े होइए, तो समझ में आयेगा. पर क्रीज पर जाकर खड़े होना दर्शक का काम नहीं है. और वह देखा जाये, तो विराट को तकनीक भी नहीं सिखा रहा. उसको मलाल यह है कि विराट आउट हो गया. उसे मलाल यह है कि अमुक निर्देशक की इस फिल्म में उतना मजा नहीं आया, जितना हमेशा आता है. वह प्यार ही दे रहा है, थोड़ा रूठकर इस बार. आपसे अपनी उम्मीदों को बयान कर रहा है. उसका मानना है कि विराट जल्दी आउट नहीं हो सकता और हिरानी कमतर फिल्म नहीं बना सकता. यह अपेक्षा और स्नेह की पराकाष्ठा है.
हिंदुस्तानी कलाकार और दर्शक का बड़ा कमाल का रिश्ता है. कलाकार चाहे सिनेमा का हो या किसी अन्य विधा का, सलमान खान से उसे प्यार है तो है. कभी प्यार का शोर और कभी निराशा का शोर. समस्या तब आती है, जब वे बातें करना बंद कर दें. बॉलीवुड को लेकर हमेशा शोर रहा है. पिछले दिनों निराशा का ज्यादा. अच्छी खबर यह है कि शोर है. यानी उम्मीद है. एक-दूसरे की आंखों में देख कर एक-दूसरे की भावनाओं को समझने की जरूरत है. यहां एक बात और देखने-समझने वाली है.........
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