बेंगलुरु हादसे से सबक लेने का समय
-राजीव चौबे-
Bengaluru stampede : इस महीने की शुरुआत में आरसीबी की जीत के जश्न पर बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मची भगदड़ में जिस तरह लोग मारे गये, वह भीड़ प्रबंधन के मोर्चे पर लापरवाही का एक और उदाहरण है. आरसीबी टीम का स्वागत करने युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सड़कों के किनारे खड़े थे. जब यह हादसा हुआ, तब स्टेडियम का गेट नहीं खुला था और बड़ी संख्या में प्रशंसक एक छोटे से गेट को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे. उस स्टेडियम की क्षमता पैंतीस हजार लोगों की थी, जबकि सरकारी आंकड़े के मुताबिक, करीब तीन लाख लोग चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर इकट्ठा हो गये थे. बेंगलुरु में हुआ हादसा व्यवस्थागत विफलता का नमूना है.
जाहिर है, इतने बड़े आयोजन के लिए आयोजकों ने सरकार से अनुमति ही नहीं ली थी. हालांकि, यह पुलिस-प्रशासन और खुफिया विभाग की चूक का भी नतीजा है. उन्होंने इस आयोजन को बहुत गंभीरता से नहीं लिया. हादसे से एक रात पहले आरसीबी की जीत के जश्न में बेंगलुरु में काफी पटाखे फूटे थे. ऐसे में, पुलिस-प्रशासन को सतर्क हो जाना चाहिए था. लेकिन कोई बैरिकेडिंग नहीं थी. हादसा स्टेडियम के अंदर नहीं, स्डेडियम में घुसने के दौरान हुआ. तब वहां पुलिस की पर्याप्त व्यवस्था तक नहीं थी, भीड़ प्रबंधन की तो बात ही छोड़ दें.
इस मामले में मैं महाराष्ट्र का उदाहरण देना चाहूंगा. महाराष्ट्र में 2003 में नासिक के कुंभ में भगदड़ मचने से 39 लोग मारे गये थे. उसके दो साल बाद राज्य के सतारा जिले में एक पहाड़ी पर स्थित........





















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