मुफ्त की रेवड़ियों के खिलाफ अदालत, पढ़ें नीरजा चौधरी का खास आलेख
Freebies : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनावों से पहले दी जाने वाली मुफ्त की रेवड़ियों की जिस तरह आलोचना की है, उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत में दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उन्हें मुफ्त में राशन और पैसे मिल रहे हैं. अदालत द्वारा यह टिप्पणी तब की गयी, जब अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभ तय करते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा. इस पर अदालत ने कहा कि राज्य सरकारें उन लोगों के लिए पैसे खर्च कर रही हैं, जो कुछ नहीं करते, लेकिन जब न्यायिक अधिकारियों के वेतन और उनकी पेंशन की बात आती है, तो वित्तीय संकट का बहाना किया जाता है. पीठ ने अटॉर्नी जनरल के जरिये सरकार से पूछा कि मुफ्त की योजनायें लागू करके आप परजीवियों की जमात नहीं खड़ी कर रहे?
यह पहली बार नहीं है, जब सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त सुविधाओं को लेकर केंद्र सरकार की खिंचाई की है. पिछले साल शीर्ष अदालत ने केंद्र और चुनाव आयोग से चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज या मुफ्त सुविधायें देने की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब देने के लिए कहा था. हाल के दौर में राजनीतिक दलों ने वोट हासिल करने के लिए मुफ्त की योजनाओं और आर्थिक लाभ देने पर बहुत अधिक भरोसा किया है. जबकि इनसे अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ता है. रिजर्व बैंक ने विगत दिसंबर में जारी अपनी रिपोर्ट में भी फ्रीबीज पर चिंता जताते हुए कहा है कि कई राज्यों ने चालू वित्त वर्ष........
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